रात दंगों में जल रही ;
सुना है रात दंगों में जल रही ;
यहाँ दिन में उदासी सी पल रही !!
हवा सहरा से चले या कि गुलशन , ,,
जलाती जुल्म ढाती ही चल रही !!
नज़ारे तो उनींदे ही रह गए ;
पलक आँसू लिए क्यों बोझल रही !!
ज़माना याद करता रहेगा' सदियों ;
शब यहाँ हादसे की जो कल रही !!
जिसे दिन रात नज़रों से निहारा ;
उन्ही निगाहों से जिंदगी ओझल रही !!
कहाँ तक ताब ? दिल बेबस ओ ग़मगीं :
सदा देकर मिरी साँसे बेकल रही !!...तनुजा ''तनु ''
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