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Tuesday, February 2, 2016


रात दंगों में जल रही ;


सुना है रात दंगों में जल रही ;
यहाँ दिन में उदासी सी पल रही !! 

हवा सहरा से चले या कि गुलशन , ,,
जलाती जुल्म ढाती ही चल रही !!

नज़ारे तो उनींदे ही रह गए ;
पलक आँसू लिए क्यों बोझल रही !!

ज़माना याद करता रहेगा' सदियों ;
शब यहाँ हादसे की जो कल रही !!

जिसे दिन रात नज़रों से निहारा ;
उन्ही निगाहों से जिंदगी ओझल रही !!

कहाँ तक ताब ?  दिल बेबस ओ ग़मगीं :
सदा देकर मिरी साँसे बेकल रही !!...तनुजा ''तनु ''

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