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Monday, March 12, 2018

भीतर पोला ढोल है ,  कहे ढाक के पात ! 
ढोल कहे तुम भी वही , पात तीन हैं गात !!

पंछी की परवाज़ है , आफताब की ओर !
मानो छूना चाहता ,   आसमान का छोर !!

हाथ पकड़ कर राह में, चला हर कदम संग !
मन उसका था बावरा , उड़ गया ज्यों पतंग !!


पात पवन उड़ाय रही ,  सारे बंधन तोड़ !
कितने घात शाख सहे ,  टूटा रे गठजोड़ !!


हाथ पकड़ कर राह में, चला हर कदम संग !
मन उसका था बावरा ,       जैसे उडे पतंग !!

परिपूरित हो आस से ,  हो पतझड़ का अंत !
कोमल कोंपल को लिये, स्वागत करो बसंत !!


सलीक़ा मुझे ही नहीं , परखूँ क्या व्यवहार !
कितने परदों चेहरा ,      मरीचिका है थार !!

वंशधरों  के सामने,  समझ करो व्यवहार !
सीख ही लेते देखते,  जैसे हों आचार !!

सपने में भी घाव थे , दुखों का ही दुलार !
अपनी सूली सेज सी ,  काँटों से है प्यार !!

सपने में भी घाव थे , दुखों का ही दुलार !
अपनी सूली सेज सी ,  काँटों के हैं हार !!... ''तनु''

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