भीतर पोला ढोल है , कहे ढाक के पात !
ढोल कहे तुम भी वही , पात तीन हैं गात !!पंछी की परवाज़ है , आफताब की ओर !
मानो छूना चाहता , आसमान का छोर !!
हाथ पकड़ कर राह में, चला हर कदम संग !
मन उसका था बावरा , उड़ गया ज्यों पतंग !!
पात पवन उड़ाय रही , सारे बंधन तोड़ !
कितने घात शाख सहे , टूटा रे गठजोड़ !!
हाथ पकड़ कर राह में, चला हर कदम संग !
मन उसका था बावरा , जैसे उडे पतंग !!
परिपूरित हो आस से , हो पतझड़ का अंत !
कोमल कोंपल को लिये, स्वागत करो बसंत !!
सलीक़ा मुझे ही नहीं , परखूँ क्या व्यवहार !
कितने परदों चेहरा , मरीचिका है थार !!
वंशधरों के सामने, समझ करो व्यवहार !
सीख ही लेते देखते, जैसे हों आचार !!
सपने में भी घाव थे , दुखों का ही दुलार !
अपनी सूली सेज सी , काँटों से है प्यार !!
सपने में भी घाव थे , दुखों का ही दुलार !
अपनी सूली सेज सी , काँटों के हैं हार !!... ''तनु''
सपने में भी घाव थे , दुखों का ही दुलार !
अपनी सूली सेज सी , काँटों से है प्यार !!
सपने में भी घाव थे , दुखों का ही दुलार !
अपनी सूली सेज सी , काँटों के हैं हार !!... ''तनु''
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