तू निगहबाँ शान लिए बैठा हूँ ;
तुझसे राब्ता आन लिए बैठा हूँ !
वक्त सदा ही रहा इम्तहानों का ;
हर माहौल में अज़ान लिए बैठा हूँ !
दीन की जानिब रुख कीजिये ;
तुझसे राब्ता आन लिए बैठा हूँ !
वक्त सदा ही रहा इम्तहानों का ;
हर माहौल में अज़ान लिए बैठा हूँ !
दीन की जानिब रुख कीजिये ;
कैसे कैसे अरमान लिए बैठा हूँ !
एहसास तकानों के सलामत रहें ;
तड़पा हूँ अहज़ान लिए बैठा हूँ !
साज़ में पर्दे की खनक बाकी है ;
मैं साँसों का गान लिए बैठा हूँ !
ख़्वाब की ताबीर में गुम हुआ ;
झोलियों ईमान लिए बैठा हूँ !.. ''तनु''
एहसास तकानों के सलामत रहें ;
तड़पा हूँ अहज़ान लिए बैठा हूँ !
साज़ में पर्दे की खनक बाकी है ;
मैं साँसों का गान लिए बैठा हूँ !
ख़्वाब की ताबीर में गुम हुआ ;
झोलियों ईमान लिए बैठा हूँ !.. ''तनु''
No comments:
Post a Comment