कौन कहता है किसी ने बेवफाई की,
साथ साथी चलता रहा रहनुमाई की !
टूट करके मिलती है जब भी मिलती है!
बात करता मैं रहा अपनी परछाई की!!
खोल कर सारे वो दरवाजे चली आती!
ज़ेहन तुझसे किसी सूरत नहीं रिहाई की!!
ओढ़ कर सोया किया मैं दररोज़ उसे!
ज़िंदगी भर ही, इसी की तो कमाई की!!
उसका हर बोसा ''तनु''रूहानी होता है !
डरता रहता बात करता नहीं जुदाई की!!,,, ''तनु''
बात करता मैं रहा अपनी परछाई की!!
खोल कर सारे वो दरवाजे चली आती!
ज़ेहन तुझसे किसी सूरत नहीं रिहाई की!!
ओढ़ कर सोया किया मैं दररोज़ उसे!
ज़िंदगी भर ही, इसी की तो कमाई की!!
उसका हर बोसा ''तनु''रूहानी होता है !
डरता रहता बात करता नहीं जुदाई की!!,,, ''तनु''
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