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Sunday, March 4, 2018

रम्ज़ हर्फ़-ए-दुआ

ये पर्दा -ए -दिल हमें नजर आता ही नहीं,
रम्ज़ हर्फ़-ए-दुआ बन नज़र आता ही नहीं,

कितने पर्दे और कितने रंगों का है जेहन,
आइना रक्खूँ कहाँ नज़र आता ही नहीं, !

ये चुप सी क्यों लगी है दीयों की लवों में,
सिलसिला रौशनी का नज़र आता ही नहीं,!

ख़िज़ाँ गयी क्यों सूखे हैं शजर अभी भी,
बहारों का वो मौसम नज़र आता ही नहीं,!

जंग के लिए हाथों में तो खंज़र ही उठ गए,   
दुआ में  उठता हाथ नज़र आता ही नहीं, !

दीजिये दिल और ले भी लीजिये  'तनु',
वो एहसास प्यार का नज़र आता ही नहीं,!!... ''तनु''

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