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Tuesday, March 6, 2018



बरसों से दुनिया वही,   ये जग कहाँ नवीन !
कभी सुमन की सेज पर, कभी सोय संगीन !!

पोला भीतर ढोल के,  कहे ढाक के पात !
तुम वहीं के रहे वहीं,    पात तीन हैं गात !!

मन उपवन में आज तो,        नाच रहे हैं मोर !
अनगिन कलियाँ खिल गयी ,महकी महकी भोर !! ... ''तनु''

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