फुटपाथों पर बिक रहे, काजू औ बादाम!
और कहीं रोटी नहीं, रोती रही अवाम!!
उसे बढ़ावा मिल रहा, जिसके काम न काज!
लोक दिखावा झूठ का, हुए मंच सरताज!!
अँगनाई कंटक बनी, कंगन हुआ उदास!
घर घर में है आजकल, नागफनी की फाँस!!
प्रगति शील हम यों हुए, कुदरत बिगड़े हाल!
कहीं सुनामी का कहर ,और कहीं भूचाल!!
हमरे घर में आय के, खेला ख़ूनी खेल!
बगल में छुरी वो रखें , करते हमसे मेल!!
बदली मन की लालसा, बदला जग व्यवहार!
पर विधाता ना बदला, जाने सब संसार!!
----"तनु"
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