नापता आया समन्दर बस्तियों को!
बेसबब ही कौन सुनता सिसकियों को!!
जब दरो दीवार तक बिखरे पड़े हैं!
पूछता अब कौन घर की खिड़कियों को!!
इक कहानी आँधियों की, बाग उजडा!
पंख तोड़े और झिंझोड़ा तितलियों को!!
क्यों तेरे रुख़सार पर बिखरी थी जुल्फें!
बादलों ने क्यों पुकारा बिजलियों को !!
सब समझते आजकल बेज़ार खुद को!
कौन दे फौलाद जन की हड्डियों को!!
-----"तनु"
बेसबब ही कौन सुनता सिसकियों को!!
जब दरो दीवार तक बिखरे पड़े हैं!
पूछता अब कौन घर की खिड़कियों को!!
इक कहानी आँधियों की, बाग उजडा!
पंख तोड़े और झिंझोड़ा तितलियों को!!
क्यों तेरे रुख़सार पर बिखरी थी जुल्फें!
बादलों ने क्यों पुकारा बिजलियों को !!
सब समझते आजकल बेज़ार खुद को!
कौन दे फौलाद जन की हड्डियों को!!
-----"तनु"
No comments:
Post a Comment