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Sunday, December 28, 2014

पीपल छाँव 
भागवत पुराण
 पंडित बाँचे 

तिर्यक वाट 
चरमर मोजड़ी 
नीरव शाम 

ससुर आये
खांस के   ठसक के
लिहाज बहू

 ठसक न्यारी
ग्रामीण परिधान 
जँचते जन

गाँव बाहर
बागरियों की बस्ती
कुँआ अलग

 जाड़े में गाँव
धुँआता कुहासा सा
जगे अलाव 

चश्मा लगाए  
गुन गुन पढ़ती  
दादीजी मेरी 

दादा की छड़ी 
लालटेन कहती 
कोने में खड़ी 

गीता का पाठ
दिनचर्या दादी की
चश्मा लगाए

ग्रामीण श्राप
अभिशप्त जीवन
बंधुआ जन

 ग्राम मुखिया
पर्दानशीन नारी
महत्वहीन 

गाँव की बोली
संस्कारित जीवन
मीठी निबोली 

आज का गाँव
गौविहीन गोकुल
नकली दूध / खरीदे दूध

गाँव को चल 
दृश्य से दृश्यांतर 
शहर डेरा

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