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Tuesday, December 30, 2014

सिंदूर सजा
मिले धरा गगन
साँझ सबेरे

 स्याह उफ़क़
फ़साने फ़िराक़ से
रोई नर्गिस

अम्बरारंभ
अलिखित लिखित
ईश चितेरा

क्षिति उन्वान
हर पल सुन्दर
मन उलझा

नया सितारा
 दो हजार पंद्रह
नभ किनारा

  नया सितारा
 दो हजार पंद्रह
नभ किनारा

क्षितिज पार
अनहद बजता
सुने न कोई

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