Labels

Thursday, December 4, 2014



आपाधापी और वक्त की कमी के कारण लोगों के पास लम्बी कविताओं के पढने का वक्त नहीं है इसलिए दोहे की तरह मुक्तक भी अधिक लोकप्रिय होते जा रहे हैं.………  मुक्तक काव्य वह रचना है जिसमें प्रबंधत्व का अभाव होते हुए भी रचना कार अपनी रचना शक्ति के सहारे सुन्दर सहज भाषा शक्ति के साथ किसी मनोरम दृश्य, किसी परिस्थिति विशेष घटना या वस्तु का चित्रमय  व  भाव पूर्ण वर्णन जिसमें प्रबंध काव्य सा आनंद आये मुक्तक काव्य कहते हैं। 

मुक्तक  शब्द का अर्थ है ''अपने आप में सम्पूर्ण होना '' अर्थात मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्णतः स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ देने वाला होता है। 

मुक्तक काव्य में छंद की विशेष बाध्यता नहीं होती है यह किसी भी छंद में लिखा जा सकता है लेकिन रचनाकार जिस किसी भी  छंद का चुनाव करे उसका निर्वहन करे। 

सामान्यतः मुक्तक छंद में चार सममात्रिक पंक्तियाँ होती हैं जिसकी पहली दूसरी और चौथी पंक्ति में तुकांत या समान्त होता है जबकि तीसरी पंक्ति  तुकांत नहीं होती है परन्तु जो बात कही गयी है उस कथ्य का उद्वेग अवश्य होता है।

कबीर, रहीम के दोहे मीराबाई के पद्य मुक्तक रचनाएँ हैं रीतिकाल में अधिकाँश मुक्तक रचनाएँ रची गयीं 

आइये समझे मुक्तक कितने प्रकार के होते है। 

विषय के आधार पर मुक्तक को तीन वर्गों में  बाँटा गया है १. श्रृंगार परक 
२. वीर रसात्मक 
३. नीति परक 

स्वरुप के आधार पर मुक्तक को गीत ,प्रबंध मुक्तक , विषय प्रधान ,संघात मुक्तक एकार्थ प्रबध तथा मुक्तक प्रबंध आदि भेद किये जा सकते हैं। 

सम मात्रिक पंक्तियों से हमारा यह अर्थ है कि सभी पंक्तियों में मात्राओं की गिनती समान रहेगी। मात्राओं की गणना का विधान हम पिछले पाठों में समझ चुके हैं। 

तिल ही तो बोये थे !! हुए ताड़ कैसे कैसे ??… २६ 
दिल ही तोड़ने के हुए, जुगाड़ कैसे कैसे ??… २६ 
भाव विहीन चेहरे हैं कोशिशें है नाकाम ,… २६ 
बुत के लिए काटे गए पहाड़ कैसे कैसे ??.... २६ ''तनु '' 

उपरोक्त मुक्तक में प्रत्येक पंक्ति में  २६ मात्रा हैं '' कैसे कैसे ''पहली दूसरी और चौथी पंक्ति में जो तुकांत बन रहा है इसे ग़ज़ल विधा में रदीफ़ कहते हैं तुकांत से पहले काफ़िया आड़, ताड़, जुगाड़, पहाड़ है तृतीय पंक्ति मुकतक का निचोड़ है।

No comments:

Post a Comment