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Wednesday, August 19, 2015

भाई!!!

तुम कितने
कर्तव्यनिष्ठ !
तुम मेरे अभीष्ट ,
तुमको पाकर 
चाँद न पाऊँ !
कृष्ण न गाऊँ !
राम न ध्याऊँ !
भूलूँ इष्ट !!!
भाई तुम कितने
कर्तव्यनिष्ठ !
तुम पर लिखना ,
आसान नहीं,
कलम कर सकती,
गुण गान नहीं !
रहे अडिग ,
हुआ समय क्लिष्ट,
भाई तुम कितने
कर्तव्यनिष्ठ !
कहाँ श्रवण ?
न करूँ मन मनन ,
है अभिमान !!!
तुम श्रवण से भी 
एक निष्ठ ,
भाई तुम कितने 
कर्तव्यनिष्ठ !
कैसे समझते कहे बिन ?
मेरे नयनों की भाषा, ,, 
अपने आप ही ,
होते दूर मेरे अरिष्ट,
सदा चाहते रिष्ट !
भाई तुम कितने ,
कर्तव्यनिष्ठ !!
तुम जानते हो ,
 हूँ बहन तुम्हारी !
 राखी का मान ,
धागों का नहीं !!
दिखावे का नहीं ,
अनंत प्यार मीठा दुलार  !!!
स्नेह आशीष , ,,
मन बन्ध निर्दिष्ट ,
भाई तुम कितने ,
कर्तव्यनिष्ठ !!




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