आज़ादी
लौ दीये की जलकर भी कहाँ आज़ाद है ;
बूँद सीप में गिरी और कहाँ आज़ाद है !
दास रखो दसों को और आज़ादी पाओ ;
दास नहीं दसों का वही यहाँ आज़ाद है !!
लौ दीये की जलकर भी कहाँ आज़ाद है ;
बूँद सीप में गिरी और कहाँ आज़ाद है !
दास रखो दसों को और आज़ादी पाओ ;
दास नहीं दसों का वही यहाँ आज़ाद है !!
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