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Monday, August 18, 2014

आज फिर गैरों की जानिब आई है बहार ,
रूठ कर न चली जाये तमन्ना हज़ार करता हूँ !!! 

ये चाँद जो है ये उसी के लिए निकला है ,
अपनी सौ सौ जान उसपे निसार करता हूँ !!!

ये जहाँ भी उसी का है उसी की बदौलत है,
मैं धीरे धीरे चांदनी छलकाया करता हूँ !!!

ये चाहत है राहें उनकी सदा  रौशन हो ,

बन के दीया जलता हूँ राहे रौशन करता हूँ !!! 

पत्थर हैं वो  उनका भगवान भी है पत्थर का  ,

फिर भी जाने क्यों उससे फ़रियाद करता हूँ !!!

गैर हो के भी तनु  अपनों से भी वो प्यारे हैं,

चुपके चुपके नज़रों से निहारा करता हूँ !!! ........... ''तनु'' 




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