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Tuesday, January 5, 2016

नाखुदा 


बात की बात है पोटली ''काल'' की ;
भाग्य बुन कर देता रहा ''जाल'' की !!

आज भी अब गया कुछ कभी ना रुका ;

बिजलियाँ गिर रही ईश के ''बाम'' की !!

आँसुओं की झड़ी बरस कर किस कदर ;

शाम से पहल करती हुई ''शाम'' की !!

ग़म अभी दास्ताँ कौन सी कह रहा ?
शोख़ियाँ खो गयी ''खास-ओ-आम'' की , ,,

खूब है आप की बात भी दोस्तो ;

बेहिसी अगरचे छा गयी ''राम'' की !!

 कैफियत धूप की पूछता रह गया ;
झूलता छाँव में नाखुदा ''घाम'' की !!,,,तनुजा ''तनु ''

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