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Monday, January 25, 2016



नया आदमी 


आदमी भी अभी नया शायद ;
जिंदगी के नए मक्र शायद !

कारवाँ -ए -ख़याल था मुझ को;
जब चले हैं जुदा जुदा शायद !

चाक सीना ज़ख़्म मिरे अपने ; 
घाव सिए  ना  नसीबा' शायद ! 

चुप जहाँ तक मुश्किल ही मुश्किल ;
बोलते   ही रुकी जुबाँ शायद !

असल ओ नक़ल के  इस जहां में ;
 ढूँढ़ते हैं खरा सोना शायद ! 

बात थी भी वही पुरानी सी ; 
संग खाकर हुआ जवां शायद !

राह सच की कठिन रही तनुजा;
झूठ के दाव घिरा सच्चा' शायद !!... तनुजा ''तनु ''

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