नया आदमी
आदमी भी अभी नया शायद ;
जिंदगी के नए मक्र शायद !
कारवाँ -ए -ख़याल था मुझ को;
जब चले हैं जुदा जुदा शायद !
चाक सीना ज़ख़्म मिरे अपने ;
घाव सिए ना नसीबा' शायद !
चुप जहाँ तक मुश्किल ही मुश्किल ;
बोलते ही रुकी जुबाँ शायद !
असल ओ नक़ल के इस जहां में ;
ढूँढ़ते हैं खरा सोना शायद !
बात थी भी वही पुरानी सी ;
संग खाकर हुआ जवां शायद !
राह सच की कठिन रही तनुजा;
झूठ के दाव घिरा सच्चा' शायद !!... तनुजा ''तनु ''
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