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Kaavya
Saturday, January 30, 2016
ओढायी थी रजनी ने, धरा को मोती की चादर ,
ऊषा लाई प्रभात, समेट ली सूरज ने सादर !
बिखेरे समेटे रोज़ - रोज़ जीवन संग ये होता !!!
एक सूरज ही तो जन - जन को खुशियाँ देता आकर ...तनुजा ''तनु ''
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