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Friday, January 1, 2016

नव वर्ष 

मार्तण्ड के साथ कुछ श्रम कण बोये मैंने ;
अधरों सूखी हँसी देख कुछ अश्रु खोये मैंने !
संसृति हो अशोक ये चाह रही मेरे दिल की , ,,
स्वर्ण से इस नव वर्ष में कुछ मोती पोये मैंने !!


अभी तो एक कदम ही चले, बहुत संघर्ष बाकी है ;
अंधियारे की रजनी ढले , बहुत उत्कर्ष बाकी है !
कलम की धार पैनी हो कटे विचारों की फसल, ,,
सृजन मार्जन परिमार्जन ज्ञान सहर्ष बाकी है !!,,,तनुजा ''तनु ''

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