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Friday, January 29, 2016


चादर.... 

खुद को कभी, कभी ज़माना देखता हूँ ;
काफ़िर हूँ फिर, कोई बहाना देखता हूँ !
गुरबतों की, चादर में पुराने दिनों को , ,,
उदास कभी ,  कभी शहाना देखता हूँ !!... तनुजा ''तनु ''

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