हाथीजी के विवाह में ;
चींटी ने किया उत्पात !
जिद पर चढ़ कर ऐंठी थी, ,,
इक कोने में बैठी थी,
सारे जंतु गए मनाने ;
पूछी सबने मन की बात!
वो किसी का कहा न माने, ,,
बीती ऐसे सारी रात,
सुबह सवेरे सबने देखा;
चींटी पहले जागी थी!
चाशनी में मुंह धोकर, ,,
शकर की साड़ी टांगी थी ,
शकर चाशनी दोनों प्यारे ;
चींटी के तो वारे न्यारे !
खुश हैं अब तो हाथी जी !
खुश है अब तो चींटी जी !!
भालू ने जब ढोल बजाया ;
मछली ने पानी लहराया !
अब नहीं वो गुमसुम जी !
बाँध के नाची रुनझुन जी !! .... ''तनु''