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Thursday, November 2, 2017

जिंदगी लज्जते ग़म है और कुछ नहीं





जिंदगी लज्जते ग़म है और कुछ नहीं :
अभी आँख पुरनम है और कुछ नहीं ! 

मैं अब बहलाऊँ तुझको किस तरह ;
ये अज़ाब से कम है और कुछ नहीं !

दर-ओ-दरीचे  उदास हैं मेरे घर के ;
आज अजीब आलम है और कुछ नहीं !

मेहर-ए-मह को छू लूँ पर किस तरह ;
सिर्फ कमन्द ही कम है और कुछ नहीं !

रफ़्ता रफ़्ता रूह गम से आबाद होगी ;
नाम तेरा ही मरहम है और कुछ नहीं !

छान कर काबा बुतखाने की मिटटी ;
पूजता इब्न-ए -आदम और कुछ नहीं !.... ''तनु''

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