तुम सामने बैठो के क़रार आया नहीं;
बहुत दिन हुए के ग़मगुसार आया नहीं!!
मेरी आँखों में नहीं सपन किसी और के ;
दीद की उम्मीद थी के यार आया नहीं !!
जज़्बा-ए-दिल पर इल्ज़ाम ना लगे कोई ;
कमतर सभी रहे के मुख़्तार आया नहीं !!
फिर बेपनाही के अंदाज़ भूल गया मैं ;
तरीक़-ए-आशिक़ी पे निखार आया नहीं !!
फ़रेब ग़म था मगर आरज़ू थी यही मेरी ;
कैसी जुस्तजू थी ये दिलदार आया नहीं !!
ऐ तनु वफ़ा दफ़्न हो गयी है ज़माने में ;
मज़ार ही मज़ार अपना दयार आया नहीं !! ....'' तनु ''
No comments:
Post a Comment