जिंदगी लज्जते ग़म है कुछ और नहीं ;
अभी आँख पुरनम है कुछ और नहीं !
मैं अब बहलाऊँ खुद को किस तरह ;
ये अज़ाब से कम है कुछ और नहीं !
दर-ओ-दरीचे उदास हैं मेरे घर के ;
आज अजीब आलम है कुछ और नहीं !
मेहर-ए-मह को छू लूँ पर किस तरह ;
सिर्फ कमन्द ही कम है कुछ और नहीं !
रफ़्ता रफ़्ता रूह गम से आबाद होगी ;
नाम तेरा ही मरहम है कुछ और नहीं !
छान कर काबा बुतखाने की मिटटी ;
खोजता इब्न-ए-आदम है कुछ और नहीं !.... ''तनु''
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