गुमनाम हुए नामा-बर तो कौन संदेश पहुँचाये!
ग़ुम हुई मेरी पहचान तो कौन संदेश पहुँचाये!!
बुतकदे में है न मस्जिद में वो कहीं मौजूद!
तार दिल के जुड़े नहीं तो कौन संदेश पहुँचाये!!
जब उससे लौ लगी सारे बंद दरीचे हो गए!
ख़ातिर, लिहाज़ टूटे तो कौन संदेश पहुँचाये!!
ये दिल बे-आरज़ू नहीं चादर थी चाहतों की!
मौन थी बुनकर इबादत तो कौन संदेश पहुँचाये!!
तअ़ज्जुब है मेरी दीवानगी ना जान पाए तुम !
नहीं पैग़ाम हवाओं को तो कौन संदेश पहुँचाये!!... ''तनु''
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