बिजलियों के काफिले हैं गुबार नहीं है;
बूँद कोई शबनमी इसमें शुमार नहीं है!
लाख आँधियाँ उठे चाहे हों बर्क़ हज़ार;
तुम से क़ुर्बत तुमसा ग़मगुसार नहीं है!
आदत बुरी है ये चुपके से तुम्हे देखना;
नहीं मलाल खुद आप शर्मसार नहीं हैं!
जानते हैं कि बुझती नहीं जी की लगी ;
जो शमा जल के पिघली सोगवार नहीं है !
लो सदा दे रही फ़ज़ायें ख़ामोशियों को ;
ये गुलों का मौसम है कहीं ख़ार नहीं है !... ''तनु''
जानते हैं कि बुझती नहीं जी की लगी ;
जो शमा जल के पिघली सोगवार नहीं है !
लो सदा दे रही फ़ज़ायें ख़ामोशियों को ;
ये गुलों का मौसम है कहीं ख़ार नहीं है !... ''तनु''
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