Labels

Saturday, April 7, 2018

बिजलियों के काफिले हैं गुबार नहीं है;


बिजलियों के काफिले हैं गुबार नहीं है;
बूँद कोई शबनमी इसमें शुमार नहीं है!

लाख आँधियाँ उठे चाहे हों बर्क़ हज़ार;
तुम से क़ुर्बत तुमसा ग़मगुसार नहीं है!

आदत बुरी है ये चुपके से तुम्हे देखना;
नहीं मलाल खुद आप शर्मसार नहीं हैं!

जानते हैं कि बुझती नहीं जी की लगी ;
जो शमा जल के पिघली सोगवार नहीं है !

लो  सदा दे रही फ़ज़ायें ख़ामोशियों को ;
ये गुलों का मौसम है कहीं ख़ार नहीं है !... ''तनु''

No comments:

Post a Comment