आज कैसे ये किरदार हैं जानती हूँ;
कौन किसका तलबगार है जानती हूँ!
बोलता सच जान भी गर जाये मेरी ;
झूठ अब सिपहसालार है जानती हूँ !
मौसमों की चाह थी परिंदे उड़ गए ;
कायनात ही शाहकार है जानती हूँ !
आँख तकती राह और दिल वीराना ;
तिश्नगी का इज़हार' है जानती हूँ !
नहीं देता कोई तलब से भी सिवा यहाँ ;
तौलकर बेचे, बाज़ार हैं जानती हूँ !,,, 'तनु'
कौन किसका तलबगार है जानती हूँ!
बोलता सच जान भी गर जाये मेरी ;
झूठ अब सिपहसालार है जानती हूँ !
मौसमों की चाह थी परिंदे उड़ गए ;
कायनात ही शाहकार है जानती हूँ !
आँख तकती राह और दिल वीराना ;
तिश्नगी का इज़हार' है जानती हूँ !
नहीं देता कोई तलब से भी सिवा यहाँ ;
तौलकर बेचे, बाज़ार हैं जानती हूँ !,,, 'तनु'
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