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Sunday, April 26, 2020

इतनी क़ुरबत में पली क्यों ज़िन्दगी!

इतनी क़ुरबत में पली क्यों ज़िन्दगी!
फिर तबस्सुम सी खिली क्यों ज़िन्दगी!!

बाग़ के फूलों में छाई उदासियाँ !

फिर अचानक से तितली क्यों ज़िन्दगी!!

एक दिन खुशियाँ लुटाने चल पड़ी!

ले के ग़मगीनियाँ खली क्यों ज़िन्दगी!!

कोई कहता फूल सी है जिंदगी
नुचती कलियाँ अधखिली क्यों ज़िन्दगी

बानगी है दर्द की कोई कहे !
थेगलों पैबंदों सिली क्यों ज़िन्दगी!!

एक उजली सी किरण के वास्ते!!

देती दिखाई धुंधली क्यों ज़िन्दगी!!

जिंदगी फिर जिंदगी के रूबरू !

उड़ती फिरती मनचली क्यों ज़िन्दगी!!

ख़ार के बिस्तर थे मीठी नींद थी!

चुभती रही मखमली क्यों ज़िन्दगी!!

जनम माटी, मरण माटी, साँच है !
जीते जी फिर गली क्यों ज़िन्दगी !!... ''तनु''

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