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Friday, April 10, 2020

आम्र कुंज खो गये कहाँ अब

आम्र कुंज खो गये कहाँ अब
खोयी कोयल कूक
देख जीव इतने विनाश को
जी में उठती हूक 

विकल हो गया रोया रे मन
खोज रहा भीना सा सावन
चेतना कहाँ थकी थकी सी
होती कैसी चूक
देख जीव इतने विनाश को
जी में उठती हूक 

मन का दर्द  तिमिर सा  वन का
चिर विषाद ज्यों विलीन मन का
खोयी उषा की ज्योति रेखा
कुसुम खिले न रूख
देख जीव इतने विनाश को
जी में उठती हूक 

कैसी मरु में ज्वाला धधके
चातक बूँद बूँद को तरसे
सरस बरसता ना अमरत जल
जाती धरती सूख
देख जीव इतने विनाश को
जी में उठती हूक 

सुखद सलोनी रात नहीं है
प्रेम भरी सौगात नहीं है
पयोधर से मिलती निराशा
सपने जाते टूट
देख जीव इतने विनाश को
जी में उठती हूक। ... ''तनु''

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