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Thursday, April 30, 2020

अपने श्रम को साधकर, पाते हैं हम मान!

श्रमजीवी कितने यहाँ, अलग अलग हैं काम !
जैसे जैसे काम हैं,                 वैसे वैसे दाम !!

छाया तम चहुँ ओर है, उठा खूब आतंक !
दीन और लाचार को, कौन बिठाये अंक !!

अपने श्रम को साधकर, पाते हैं जो मान!
श्रम कोई छोटा नहीं, श्रम का हो सम्मान!!

श्रम पूँजी ताले लगी, श्रमिक हुए बदहाल!
 भूलेगा कैसे जहां,  कोरोना है  काल!!

अपने ही घर में हुए ,  कैसे बेघरबार!
कोरोना की जीत है,श्रमिकों की है हार!!

छाया तम चहुँ ओर है, उठा आतंक धूम!
दीन और लाचार ही, होता है मज़लूम!!

जिन श्रमिकों के काम से, हमको है आराम!
आभारी उनका रहूँ , नहीं लगाऊँ दाम!!... ''तनु''






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