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Tuesday, October 24, 2017

जो अटल होते गिरिवर तुम ;







जो अटल होते गिरिवर तुम ;
       वज्र उर न डरता छेदन से !

जो अगर महकते चंदन से ;
       तो सभी लिपटते वंदन से !

अम्बुधर से तृषा बुझाती ;
       मनु चौपाये खग लेहन से !

 जो मंद मंद पवन दे प्राण ;
      तो उपकृत हो नित सेवन से !

दिनकर चन्दा लगे अहर्निश ;
          सृष्टि की नैया खेवन से !

वंचक मानव वंचित रहते ;
    इस अपार निधि के जेमन से ! 

कौन हो तुम ? आये कहाँ से ; 
    कौ बच न सका इस लेपन से !.... ''तनु ''


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