जो अटल होते गिरिवर तुम ;
वज्र उर न डरता छेदन से !
जो अगर महकते चंदन से ;
तो सभी लिपटते वंदन से !
अम्बुधर से तृषा बुझाती ;
मनु चौपाये खग लेहन से !
जो मंद मंद पवन दे प्राण ;
तो उपकृत हो नित सेवन से !
दिनकर चन्दा लगे अहर्निश ;
सृष्टि की नैया खेवन से !
वंचक मानव वंचित रहते ;
इस अपार निधि के जेमन से !
कौन हो तुम ? आये कहाँ से ;
कौ बच न सका इस लेपन से !.... ''तनु ''
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