खुशी होती जीवन में, नहीं छोड़ते गाँव ?
छोटी चाहे झोपडी, सुखदायी थी छाँव !!
रोटी के लाले पड़े, रोज़गार की मार !
जीना ही दूभर हुआ, चलना छूरी धार !!
महानगर को पहुँचते, गाँव गली घर छोड़!
कमा कमा घर भेजते, मेहनत हाड तोड़ !!
थमी जा रही जिंदगी, टूट गयी उम्मीद !
रोटी भी मिलती नहीं, नहीं कमाई दीद !!
गठरी ले पैदल चला, अब तो पहुँचूँ गाँव !
दुनिया ये मेरी नहीं, जाऊँ अपने ठाँव !!
यहाँ मरते वहीं मरें, जहाँ हमारी जान !
रोटी न हो अपने हों, ऐसा जी में जान !!
मुट्ठी एक जहान है, बंद रही तो लाख!
खुलते खुलते खुल गयी, हुआ भरोसा ख़ाक !!
मुट्ठी एक जहान है, बंद रही तो लाख!
खुलते खुलते खुल गयी, हुआ भरोसा ख़ाक !!
नाता जुड़ता शहर से, खातिर अपने पेट !
जब रोटी ही ना मिले, सब कुछ मटियामेट !!
खोकर छाँव बरगद की, छोड़ खेत खलिहान !
संगी साथी छोड़ कर, ले हथेलियों प्रान !! ... ''तनु''
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