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Saturday, May 2, 2020

खुशी होती जीवन में, नहीं छोड़ते गाँव ?


खुशी होती जीवन में, नहीं छोड़ते गाँव ?
छोटी चाहे झोपडी, सुखदायी थी छाँव !!

रोटी के लाले पड़े, रोज़गार की मार !
जीना ही दूभर हुआ, चलना छूरी धार !!

महानगर को पहुँचते, गाँव गली घर छोड़!
कमा कमा घर भेजते, मेहनत हाड तोड़ !!

थमी जा रही जिंदगी, टूट गयी उम्मीद !
रोटी भी मिलती नहीं, नहीं कमाई दीद !!

गठरी ले पैदल चला, अब तो पहुँचूँ गाँव !
दुनिया ये मेरी नहीं, जाऊँ अपने ठाँव !!

यहाँ मरते वहीं मरें, जहाँ हमारी जान !
रोटी न हो अपने हों, ऐसा जी में जान !!

मुट्ठी एक जहान  है,        बंद रही तो लाख! 
खुलते खुलते खुल गयी, हुआ भरोसा ख़ाक !!

नाता जुड़ता शहर से, खातिर अपने पेट !
जब रोटी ही ना मिले, सब कुछ मटियामेट !!

खोकर छाँव बरगद की, छोड़ खेत खलिहान !
संगी साथी छोड़ कर, ले हथेलियों प्रान !! ... ''तनु''

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