आकाश
हवा क्यों है रुकी सहमी रहे विटप मुरझाये से ;
बना आकाश श्रीहीन दिनकर सोये अलसाये से !
मही भी कर रही अनुनय अहं कब टूटे अभ्र का, ,,
बरस कर बात मन की खोलो क्यों हो घबराये से !!
हवा क्यों है रुकी सहमी रहे विटप मुरझाये से ;
बना आकाश श्रीहीन दिनकर सोये अलसाये से !
मही भी कर रही अनुनय अहं कब टूटे अभ्र का, ,,
बरस कर बात मन की खोलो क्यों हो घबराये से !!
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