दया ....
हर जीव में दया है इंसान क्यों दूर हो गए ;
दानवता के रक्त बीज नीच मशहूर हो गए !
नूर लेकर जन्मे लिए बालक बेनूर हो गए ;
खुद ही अपनी खुदी में क्यों मगरूर हो गए !!
जहाँ प्रेम होगा जन एक दूसरे को समझेंगे ;
भुवन को जानेंगे जग को अपना समझेंगे !
दया से धर्म उपजा है उसको ''मूल'' समझेंगे;
उगते अंकुर को सींचेंगे तत्व को समझेंगे !!
दया दया चिल्लाने से दया नहीं है मिलती ;
पलती बढती दया दिलों दीप सी है जलती !
पीड़ा मरहम लगाती जखम भी है सिलती ;
बून्द बन जमती कतरा बर्फ सी है गलती !!
भीख दया की मत मांगो स्वाभिमान जगाओ ;
राम कृष्ण नानक की धरा अभिमान जगाओ !
मिलन के गीत गाओ सुख का परचम लहराओ ;
दया सिर्फ कहो मत दया जीवन में अपनाओ !!
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