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Wednesday, July 8, 2015

गया वक्त … 


वक्त ए पीरी और शबाब चाहता हूँ:
बुझी हुई आँखो में ख्वाब चाहता हूँ !

गया लम्हा अब कभी नहीं आएगा ;
गुजरते पलों से मैं गुलाब चाहता हूँ !

मह - जबीं दिल के करीब थी तुम ;
फिर से वो शबे महताब चाहता हूँ !

मजे ले सुनते किस्सा जोश ए इश्क; 
मेरे चाँद से ही मैं हिजाब चाहता हूँ !

सुकून आज न सुकून कल ही होगा ;
भटकने दे मुझे मैं इज्तिराब चाहता हूँ! 

बना अपनी यादों का प्यारा ठिकाना ;
कैसे कहूँ मैं सब्र ओ ताब चाहता हूँ !!!.... तनुजा ''तनु ''

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