गया वक्त …
वक्त ए पीरी और शबाब चाहता हूँ:
बुझी हुई आँखो में ख्वाब चाहता हूँ !
गया लम्हा अब कभी नहीं आएगा ;
गुजरते पलों से मैं गुलाब चाहता हूँ !
मह - जबीं दिल के करीब थी तुम ;
फिर से वो शबे महताब चाहता हूँ !
मजे ले सुनते किस्सा जोश ए इश्क;
मेरे चाँद से ही मैं हिजाब चाहता हूँ !
सुकून आज न सुकून कल ही होगा ;
भटकने दे मुझे मैं इज्तिराब चाहता हूँ!
बना अपनी यादों का प्यारा ठिकाना ;
कैसे कहूँ मैं सब्र ओ ताब चाहता हूँ !!!.... तनुजा ''तनु ''
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