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Wednesday, July 22, 2015

इश्क ही जन्नत … 


न जाने जमाने तुझे क्या हुआ है ;
मुझे क्यों मिटाने पर तुला हुआ है !

मिटेगी मुहब्बत कभी क्यूँ कर यहां 
खुल्द ही यहां पर खुदारा हुआ है !!

मुरीदों अब दवा मुझे क्या बचाए ;
गई सांस मर्ज ये इश्क का हुआ है !

रखो प्यार के बीज दिल में सहेजे;
नियामत खुदा की है पता हुआ है !

जियो तो अहद ओ शबाब में' जी लो;
जियो इस तरह ही जी लो'क्या हुआ है !

जश्न मुहब्बत का मनाने न दिल दे ;
शमा रौशन नहीं उसे क्या हुआ है !!

रखो प्यार के बीज दिल में सहेजे
नियामत खुदा की है पता हुआ है 

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