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Thursday, March 10, 2016


हारे को हरि  नाम 


मेरी श्रृद्धा विकलांग है, 
औ प्रथा झूठी !
वन्दना का झूठा स्वांग है ,
औ किस्मत रूठी!!

निष्प्राण देह है प्राण कहाँ ?

सर्जन खोया है;
ऋतु बसंत अनमोल सुदर्शन ,
मनवा सोया है!

श्रवण शक्ति कहाँ गुम हो गई ?
कौ चुपड़े बूटी ?  
सोन चिरैया चिलवाँस रे  ,
औ आँखें फूटी  ----


कर टूटे और सम्यक कर्म ?
बंजर बोया है,  
बालू सरसों एक सा धर्म !
फिसलन गोया है , ,,,,

झूठे छद्म, वो गोलबंदी ;
को बीने खूंटी ?
ब्रह्म कमल की आशा क्योंकर ?
खो वीर बहूटी -----


जिव्हा गोपन संवादो में ;  
जहरी पोया है , ,
चेहरा कई शब्दों में गुम, ,, 
नीम भिगोया है ! 

जीवन  है मदमाता हाथी ;
ज्यों हारा च्यूँटी !  
मन उड़ता फिरे किलवाँक  रे 
औ टाँगे टूटी----,,,..तनुजा ''तनु ''






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