हारे को हरि नाम
मेरी श्रृद्धा विकलांग है,
औ प्रथा झूठी !
वन्दना का झूठा स्वांग है ,
औ किस्मत रूठी!!
निष्प्राण देह है प्राण कहाँ ?
श्रवण शक्ति कहाँ गुम हो गई ?
निष्प्राण देह है प्राण कहाँ ?
सर्जन खोया है;
ऋतु बसंत अनमोल सुदर्शन ,
मनवा सोया है!
श्रवण शक्ति कहाँ गुम हो गई ?
कौ चुपड़े बूटी ?
सोन चिरैया चिलवाँस रे ,
औ आँखें फूटी ----
कर टूटे और सम्यक कर्म ?
बंजर बोया है,
बालू सरसों एक सा धर्म !
फिसलन गोया है , ,,,,
झूठे छद्म, वो गोलबंदी ;
को बीने खूंटी ?
ब्रह्म कमल की आशा क्योंकर ?
खो वीर बहूटी -----
जिव्हा गोपन संवादो में ;
जहरी पोया है , ,
चेहरा कई शब्दों में गुम, ,,
नीम भिगोया है !
जीवन है मदमाता हाथी ;
ज्यों हारा च्यूँटी !
मन उड़ता फिरे किलवाँक रे
औ टाँगे टूटी----,,,..तनुजा ''तनु ''
No comments:
Post a Comment