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Tuesday, March 22, 2016



होली है !!!




कागज पर स्याही से खेली ;
कवि ने भावों की होली !

सरसता पीला रंग फेरा ;
स्नेह ने सजाया डेरा !
कुसुम कुसुम से रंग चुराकर,
फाग ने लगाया फेरा !!
करता विनती हाथ जोड़कर ,
खेल मत बारूद गोली !!
कागज पर स्याही से खेली 
कवि ने भावों की होली ...... 

आसमान लेकर कविता में ; 
नीला गगन दिखाया है !   
ज्ञान दीपक जलाकर जग में ,
उजियारा फैलाया है !!
तज कर रस काव्य की गुझिया 
कौन खाए ये निबोली !!
कागज पर स्याही से खेली 
कवि ने भावों की होली ..... 

इंद्रधनुषी रंग रचाकर ;

नगर बसा सौहार्द्र का !
मानवता के संग चला वो ,
ले बीड़ा सेवार्थ सा !!
भावो की मदिरा छलकाकर , 
खेले मन मानस होली !!
कागज पर स्याही से खेली 
कवि ने भावों की होली .... 

द्वेष कलुष को जगह नहीं है ;
होली का मान यही है , 
ढप बाजे और फाग गायें !
होली का गान यही है !! 
मन की मस्ती में इतराये ,
नाचे मस्तों की टोली !!
कागज पर स्याही से खेली 
कवि ने भावों की होली ..... तनुजा ''तनु ''





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