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Kaavya
Saturday, January 20, 2018
घटता बढ़ता चाँद भी ,छुप छुप करता घात !
तारों के आखर पढ़े, रजनी सारी रात;
घटता बढ़ता चाँद भी ,छुप छुप करता घात !
उदित हुए आदित्य हैं , अनबोली है रैन , ,,
दिन दिन मन गुनती रही, कह ना पायी बात !....''तनु''
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