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Friday, January 5, 2018

तू नहीं, तो ये माहताब कुछ भी नहीं

तू नहीं,  तो  ये माहताब कुछ भी नहीं;
गुल और गुलों के ख़्वाब कुछ भी नहीं !

हूँ उदास, गुम मेरी नज़रों की हँसी ;
तारों से अदब -आदाब कुछ भी नहीं !

इस चमन में कभी गुलों की बहार थी;
है नहीं शाख़  को शादाब कुछ भी नहीं !

रिस गए ज़ख्म दर्द से भी हूँ बेज़ार;
दिल में खूं का सैलाब कुछ भी नहीं ! 

की अश्क़ मोती से बहे बहते ही रहे ;
दिले गौहर की तब-ओ-ताब कुछ भी नहीं !!... ''तनु ''

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