ये पर्दा -ए -दिल हमें नजर क्यों नहीं आता ,
रम्ज़ हर्फ़-ए-दुआ बन नज़र क्यों नहीं आता !
कितने पर्दे और कितने रंगों का है जेहन ,
आइना रक्खूँ कहाँ नज़र क्यों नहीं आता !
ये चुप सी क्यों लगी है दीयों की लवों में ,
सिलसिला रौशनी का नज़र क्यों नहीं आता !
ख़िज़ाँ गयी क्यों सूखे हैं शजर अभी भी ,
बहारों का वो मौसम नज़र क्यों नहीं आता !
जंग के लिए हाथों में तो खंज़र ही उठ गए ,
दुआ में उठता हाथ नज़र क्यों नहीं आता !
कीजिये तक़्तीअ खूब वज़्न देखिये 'तनु',
वो शिद्द्त -ए - एहसास नज़र क्यों नहीं आता !!... ''तनु''
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