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Wednesday, January 17, 2018

अनजान हूँ उस से, पहचान क्यों रखूँ ;




अनजान हूँ उस से, पहचान क्यों रखूँ ;
तारीफ़ करूँ उसकी,  ध्यान क्यों रखूँ !

जानती नीयत, भरोसा नहीं किसी का ;

वो नहीं अपना, उसे मेहमान क्यों रखूँ !

आए जिंदगी में, जायेंगे सभी इक दिन; 
मुकाम नहीं  इतना सामान क्यों रखूँ !

मुस्कुराते  चेहरों की कीमत है बहुत ;
फूल ये मुरझाये ,  गुलदान क्यों रखूँ !

लगता डर उसे जो गुनाहों में डूबता ;
मुझसे तो ख़ता नहीं मीज़ान क्यों खूँ !...'' तनु ''

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