अनजान हूँ उस से, पहचान क्यों रखूँ ;
तारीफ़ करूँ उसकी, ध्यान क्यों रखूँ !
जानती नीयत, भरोसा नहीं किसी का ;
वो नहीं अपना, उसे मेहमान क्यों रखूँ !
आए जिंदगी में, जायेंगे सभी इक दिन;
मुकाम नहीं इतना सामान क्यों रखूँ !
मुस्कुराते चेहरों की कीमत है बहुत ;
फूल ये मुरझाये , गुलदान क्यों रखूँ !
फूल ये मुरझाये , गुलदान क्यों रखूँ !
लगता डर उसे जो गुनाहों में डूबता ;
मुझसे तो ख़ता नहीं मीज़ान क्यों रखूँ !...'' तनु ''
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