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Saturday, January 6, 2018

बेकरार होकर आया जाड़ा



बेकरार होकर आया जाड़ा ;
जाकर धूप को दिया लताड़ा ,
हल्की होकर पसरी अब , ,,
शायद दिया नहीं था भाड़ा !

कितनी खटपट होती झटपट ;
घड़ियाँ भाग रही हैं सरपट ,
आलसियों को पीछे पछाड़ा , ,,
ओढ़ें रज़ाई पढ़ें पहाड़ा !
 बेकरार होकर आया जाड़ा 

कभी कोहरा धूप का दंगल ;
पाला कभी करे अमंगल ,
बीच बीच में मावठ गाढ़ा , ,, 
बहे नाक तो पी लो काढ़ा !
बेकरार होकर आया जाड़ा 

मिली सर्दियाँ मटरगश्तियाँ ;
 धूप की मीठी सरगोशियाँ ,
खूब इसने गर्मी को झाड़ा , ,, 
तार तार कर सबको ताड़ा ! 
बेकरार होकर आया जाड़ा 

 दिन छोटे और रात बड़ी है ;

कहीं कहीं तो बर्फ पड़ी है ,
ठिठुरन ने चमड़ी को फाड़ा ,,,
रंग हो गया बिलकुल पाड़ा !
बेकरार होकर आया जाड़ा ,,, ''तनु ''

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