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Monday, June 29, 2015



कृष्ण कमलापते 


वल्लरी प्रीत की प्यारी, यही मीरा लगाये है ; 
बहाये नैन आँसू में, कभी जियरा जलाये है !

कहे जाती कभी कान्ह, कभी मोहन कहे जाती ;
भगत के भाव में डूबे, भगवन मगन  नहाये है !

कभी फूलों लताओं में, कभी बादल हवाओं में ; 
रहा करते दिलों के बीच, नाथ ''जगत'' कहाये है !

लगाकर ध्यान प्रीतम का, जगा ले साँच की ज्वाला ;
मुरारि, गिरधर, नटवर वो तेरे' भीतर समाये है !

मुरलिया की धुन बजी और घनश्याम गरजते हैं ; 
 
सुमन के तन, सुवासित मन, संसार को दिखाए हैं ,,,.... तनुजा ''तनु ''

















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