कृष्ण कमलापते
वल्लरी प्रीत की प्यारी, यही मीरा लगाये है ;
बहाये नैन आँसू में, कभी जियरा जलाये है !कहे जाती कभी कान्ह, कभी मोहन कहे जाती ;
भगत के भाव में डूबे, भगवन मगन नहाये है !
कभी फूलों लताओं में, कभी बादल हवाओं में ;
रहा करते दिलों के बीच, नाथ ''जगत'' कहाये है !
लगाकर ध्यान प्रीतम का, जगा ले साँच की ज्वाला ;
मुरारि, गिरधर, नटवर वो तेरे' भीतर समाये है !
मुरलिया की धुन बजी और घनश्याम गरजते हैं ;
सुमन के तन, सुवासित मन, संसार को दिखाए हैं ,,,.... तनुजा ''तनु ''
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