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Sunday, June 14, 2015


किसे दूँ  सदा दिल बिचारा बहुत है ;
बुत और खुदा को पुकारा बहुत है ! 

परिंदा सुबकता !! चमन रो रहा है ;
बहार ! गुल ! गुंचो ! इशारा बहुत है !

गुम हुआ इस कदर सदाओं में अपनी ;
खुदी को खुदी से निखारा बहुत है !

इल्तिजा फलक से, पुकारा जमीं को ;
चमकता दिखा वो शरारा बहुत है !

दिल तंग रखा शाह भी रो रहा है ;
गरीबी,   गरीब को मारा बहुत है !

म नवाँ उसी के अजीब तिलिस्म है ; 
बजा ढोल दूर,   धमकारा बहुत है !! ,,,,तनुजा ''तनु'' 

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