लिबास
धुंध की चादर कोहसार का, लिबास बन गयी !
शीतल धुंध चली नज़ारों का, लिबास बन गयी !!
शीतल धुंध चली नज़ारों का, लिबास बन गयी !!
पहाड़ का जेहन तोड़ने, आसमाँ' झुक गया !
बह रही नदिया धरा का पाक लिबास बन गयी !!
बे - जुबान डगर, कहाँ रही ? ''बाज़ीचा'' आदमी !
शोहरत की भूख ईमान का' लिबास बन गयी !!
वक्त ने ली किताब सजा, हरफ दुल्हन बन गए !
शफाकत, शर्म, नज़ाकत, लहजा, लिबास बन गयी !!
बैठकर देखा किये, इस जहान के खेल को;
जान तन से जा मिली शबाब का' लिबास बन गयी!!!
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