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Thursday, June 4, 2015

लिबास 

धुंध की चादर कोहसार का,   लिबास बन गयी !
शीतल धुंध चली नज़ारों का,  लिबास बन गयी !!

पहाड़ का जेहन तोड़ने, आसमाँ' झुक गया !
बह रही नदिया धरा का पाक लिबास बन गयी !!

बे - जुबान डगर, कहाँ रही ?  ''बाज़ीचा'' आदमी !
शोहरत की भूख ईमान का' लिबास बन गयी !!

वक्त ने ली किताब सजा,  हरफ दुल्हन बन गए !
शफाकत, शर्म, नज़ाकत, लहजा, लिबास बन गयी !!

बैठकर देखा किये, इस जहान के खेल को; 
जान तन से जा मिली शबाब का' लिबास बन गयी!!!

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