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Saturday, June 6, 2015



पर्यावरण 

जल जलाया, जला ज़मीँ चले, ज़लज़ले दिखाए हैं ;
हम ! हमारी ही खुदी !!  हाय रे ये दिन दिखाए हैं !

नज़रें बार -ए - नदामत से उठेंगी अब कभी कैसे ? 
शर्म  -ओ - रंज -ओ - गम लिए क्या आँसू बहाये है ??

जहान पालीथिन का,प्लास्टिक का, मशीनी बशर का , ,,
सुकूं खोया जिंदगी गुज़रे पलों को बुलाये है !

तुम ढूँढ़ते हो  पा - ए - हवा और  हँसी परिंदो की ? 
गुलों को  कुचला है   कुदरत के जलवे मिटाये हैं, ,,,

 धरा धैर्य धर्म का,   धर रही धरती अधरों धीर , 
 दहन दोहन दास्ताँ' जी  में दावानल जलाये है!!!

मनाने जश्न  मौज - ए  -हवा - ए -गुल को बहने दो ;
बड़ी मुश्किल से ईश्वर ने हमें ये दिन दिखाए हैं !! 

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