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Thursday, June 4, 2015






कशिश दिल की इक सजन आँखों लुभाया देखिए ;
जिंदगी में अब वही,         साँसों समाया देखिए !

रात की आँखों में कई जवाब सुहाने लगे ;
है अहसास ख्वाब मेरा ही चुराया देखिये !

ज़ेर -ए -फैसला बाकी है महज़र -ए -अमल में ;
दिल सजाएँ चाहता कहाँ,    सरमाया देखिये! 

घायल,  गुलाब -ज़ार हूँ ज़ख्मों से तो क्या हुआ , 
दिल गुले  गुलज़ार घर खुशियों सजाया देखिये !

मैं लिए  वरक   बैठी  हुई   इन्तिसाब के लिए ;
किताब-ए- दिल पर नाम  इश्क लिखाया देखिये !

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