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Monday, June 15, 2015

इश्क़ 


महकती गजल है, गीत हँसी सी, बिखेर जाता है ;
तरन्नुम का नशीला जोश, दिल पर फेर जाता है !

लरज कर झूम कर बाँहों से वो जब दूर जाता है ;
खुदारा प्यार का मारा,  दिल धडका ये जाता है !

ज़र्ब - ए - संग गहरे से, संग संगदिल खाए है ; 
मरहम देता है, गुल रहगुज़र बिछाए जाता है !

पलकों पे मेरी, जुगनुओं से,-- सपने चमकते हैं; 
महफ़िल नींद की सजा सपनों में आये जाता है !

दिल इश्क लिए खुदा को सजदा किये ही जायेगा ;
सनक यही, गुल से खारो को, अलग किये जाता है !

बुलबुल का है बाग़ और गुलों की हैं रंगीनियाँ ;
मुझे कफ़स में भी बेड़ियों से सजाये जाता है !

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