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Monday, June 1, 2015

जिंदगी 


अभी पहने है जिंदगी ने नकाब कई ;
आँखों को देखने का दरीचा चाहिए ! 

गम की आह भी है ख़ुशी की चाह भी है ; 
दुआएँ  भेजने का सलीका चाहिए' !

कहीं खार हैं तो कही है गुलों के रंग ;
खुशनुमा जिंदगी ना  गज़ीदा चाहिए !

चलो हम कुबूल कर लें सैल -ए - नूर को ;
उठ गए साये उजाला गुज़ीदा चाहिये' !

कैसे गुबार हैं वादी - ए -  कोहसार से' ;
इक तेरा करम हो न ग़मदीदा चाहिए !

परिंदे हैं हम मालिक तेरे गुलशन के ;
जिंदगी हमें हमेशा पसंदीदा चाहिए ! 

दरीचा=खिड़की 
गज़ीदा= डंक लगा हुआ 
सैल -ए - नूर = रौशनी 
गुज़ीदा = चुना हुआ 
वादी - ए -  कोहसार = घाटी mountainous valley
मदीदा  = दुखी 

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