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Friday, June 26, 2015

कैसे कहूँ ?


बर्बाद भी नहीं,   मैं आबाद भी नहीं ;
नाशाद हूँ किसी को' भी बताती नहीं !


जज़्बात सागर के सीने में हैं दफ़्न ; 
पैगाम रेत पर हैं'  पढ़ता कोई नहीं !

आई बहार फूल खिले शूल साथ हैं ; 

कैसे पता उन्हें ये बातें चुभी नहीं ??

मैं बूँद बादलों की हूँ चाह गगन है ; 
मोती बन रहूँ सीप, ये चाहती नहीं !

बेसबब इंतज़ार करेगा न कोई अब ;

पलटकर मैं किसी को भी देखती नहीं !

ये ज़िद दायरों की है  जो टूटते नही !
उम्मीद आखरी निकली ही कभी नहीं !,,,तनुजा ''तनु ''


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