कैसे कहूँ ?
बर्बाद भी नहीं, मैं आबाद भी नहीं ;
नाशाद हूँ किसी को' भी बताती नहीं !
जज़्बात सागर के सीने में हैं दफ़्न ;
पैगाम रेत पर हैं' पढ़ता कोई नहीं !
आई बहार फूल खिले शूल साथ हैं ;
कैसे पता उन्हें ये बातें चुभी नहीं ??
मैं बूँद बादलों की हूँ चाह गगन है ;
मोती बन रहूँ सीप, ये चाहती नहीं !
बेसबब इंतज़ार करेगा न कोई अब ;
पलटकर मैं किसी को भी देखती नहीं !
ये ज़िद दायरों की है जो टूटते नही !
उम्मीद आखरी निकली ही कभी नहीं !,,,तनुजा ''तनु ''
बर्बाद भी नहीं, मैं आबाद भी नहीं ;
नाशाद हूँ किसी को' भी बताती नहीं !
जज़्बात सागर के सीने में हैं दफ़्न ;
पैगाम रेत पर हैं' पढ़ता कोई नहीं !
आई बहार फूल खिले शूल साथ हैं ;
कैसे पता उन्हें ये बातें चुभी नहीं ??
मैं बूँद बादलों की हूँ चाह गगन है ;
मोती बन रहूँ सीप, ये चाहती नहीं !
बेसबब इंतज़ार करेगा न कोई अब ;
पलटकर मैं किसी को भी देखती नहीं !
ये ज़िद दायरों की है जो टूटते नही !
उम्मीद आखरी निकली ही कभी नहीं !,,,तनुजा ''तनु ''
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